यह कैसी हवा चली, देखो!
यह कैसी हवा चली, देखो!
है लघु विषाणु का विकट कहर, अँखियों में पीर पली, देखो!
कितने अपनों को उड़ा गई, यह कैसी हवा चली, देखो!!
वो वर्तमान के साथी सब, अब बीते पल की याद बने,
अतिशय दोहन करके महि का, ‘मनु' ही ‘मनु' का सय्याद बने।
शीतल, सुरभित, संतुलित भुवन, की हवा हुई पगली देखो!
यह कैसी हवा चली, देखो!!
बरगद, पीपल-सम विटप कटे, खेचर के कोटर उजड़ गए,
सरिता-पथ में अवरोध खड़े, अनुरंजित जलकण बिगड़ गए।
तृष्णा से धरणी फटी कहीं, गिर रही कहीं बिजली, देखो!
यह कैसी हवा चली, देखो!!
लाख जतन कर रहा मनुज, लाखों घर हैं ब
र्बाद हुए,
वंचना ‘खुदी’ ने की ‘खुद’ से, शव पर निज हित आबाद हुए।
प्राकृतिक कोप मानवता पर, कीमत भारी उछली, देखो!
यह कैसी हवा चली, देखो!!
संकेत नियति का समझो, मनु! संतुलन धरा पर बना रहे,
खुद जीओ, जीने दो सबको, वैविध्य-विभूषण घना रहे।
तुम हो अमृत के पुत्र पवित, चेतनता फिर सँभली, देखो!
यह कैसी हवा चली, देखो!!
जड़-चेतन से अनुराग बढ़े, अपनी नीयत जब साफ रहे,
तन-मन दूषण से मुक्त रहे, सहजीवी सँग इंसाफ रहे,
स्रष्टा की कृपा मिले सबको, किस्मत सबकी बदली, देखो!
यह कैसी हवा चली, देखो!!