बेअसर
बेअसर
बेअसर हो चुकी हे ज़िदगी,
अब तो दुआँ भी असर नहीं करती,
ख़ुशीयाँ आतीं भी होगी,
लेकिन महसूस नही होती,
अंधेरी ज़िदगी में रोशनी होतीं भी होगी सायद,
लेकिन मुझे दिखाईं नहीं देती,
मुस्कुराहटें गमों से युह ढल गई जेसे शाम हे ढलती,
नयी सुबह आती भी होगी,
लेकिन मुस्कान जगा नहीं पाती,
बेअसर हो चुकी हे ज़िदगी,
अब तो दुआ भी असर नहीं करती,
गहराई में फंसी ज़िदगी ऊँचाई छुह नहीं सकती,
किसी कटे हुए परिंदे के पर जैसी
ज़िदगी उड़ नहीं सकती,
शुकुन की लहर ज़िदगी में आतीं भी होंगी,
लेकिन तन्हाई के अंगारों में जल जाती होंगी,
लड़खड़ाती हुई बेसहारा ज़िदगी में,
मिलेगी कहाँ सहारे की बैसाखी,
बेअसर हो चुकी है ज़िदगी,
अब तो दुआ भी असर नहीं करती।