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डॉ. Pankajwasinee

Tragedy Inspirational

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डॉ. Pankajwasinee

Tragedy Inspirational

ओ मुनिया के बापू!

ओ मुनिया के बापू!

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ओ मुनिया के बापू

हम तो थे मस्त - मगन 

रमे इन स्वप्न - नगरियों में 

बना के अपना विद्रूप आशियाना 

(बड़े नालों - नहरों और

 रेल पटरियों के किनारे)

जागे भाग, तो चालों में 


 गढ़ रहे थे दिन - रात:

 इन नगरों की सुंदर काया

अपने खून- पसीने से 

आत्मा को निचोड़- निचोड़कर 


आबाद कर रहे थे:

फैक्ट्रियां और मिलें

बच्चों को छोड़ भगवान भरोसे 

अपने हाथ - पाँव गँवा- गँवा कर 


भर रहे थे दिन रात:

मिल मालिकों और उद्योगपतियों की

बड़ी-बड़ी तिजोरियाँ 

अपनी मांस- मज्जा गला- गला कर


 बना रहे थे ऊंचे - ऊंचे भवन

और गगनचुंबी अट्टालिकाएँ 

झुलसाती धूप की भट्टी में तप

अपने खून को जला- जला कर


पर ज्योंही आई यह कोरोना महा विपदा 

इन्होंने झोंक दिया हमें निर्मम अग्नि- आपदा 

ली नहीं सुध हमारी,

फेर लीं गिरगिटी नजरें 

ये मालिक तो रहे हैं कृतघ्न ही सदा


अब जाएं भी तो भला हम किस आशियाने 

जो वर्षों पहले हुआ करते थे हमारे ठिकाने 

कौन पढे़गा: हमारे चेहरे पर लिखी वक्त की इबारत 

हमारे हिस्से हड़प, गांव में सब बने आज सयाने।


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