शीर्षक
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आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।
हे रघुनंदन तेरे बिन कह, है कौन जग का सहारा ।।
सत्य न्याय सब हार रहे हैं , अन्याय की होती जीत।
हिंसा द्वेष फल फूल रहे , कोने पड़ी रोती प्रीत ।।
सौहार्द्र संस्कृति है निष्प्राण, मृतक पड़ा भाईचारा ।
आह्वान हे राम तुम्हारा ,फैला जग में अंधियारा ।।
सत्य नित्य प्रताड़ना पाता, झूठ फैला बरगद सा ।
संस्कृति करती नित्य विषपान ,पाश्चात्य बना अजगर- सा ।।
मूल्य आदर्श सब टूट रहे, सूखी नैतिकता धारा ।
आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।।
संबंधों का नंदनकानन, लील रही है भौतिकता ।
पारिजात सब पुष्प नेह के, कुचल दी आत्म केंद्रिकता ।।
राजनीति की विसात पर अब ,मनुष्यता बनी चारा ।
आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।।
स्वार्थ पगी है दुनिया सारी, त्याग -स्नेह मिट रहा जहां ।
जगत् दानवता बोलबाला, मिट रहा मानवता -निशां ।।
प्रभु!कलुषित हो गया संसार, हर लो हिय का तम सारा ।
आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।।
सारी दुनिया झोंक युद्ध में, स्त्री गरिमा से खेल रहा ।
मार रहे भाई-भाई को, मानव कलंक झेल रहा ।।
नित्य द्रौपदी का चीर हरण, जल बहे नयन से खारा ।
आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।।
