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डॉ. Pankajwasinee

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डॉ. Pankajwasinee

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आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।

हे रघुनंदन तेरे बिन कह, है कौन जग का सहारा ।।


सत्य न्याय सब हार रहे हैं , अन्याय की होती जीत। 

हिंसा द्वेष फल फूल रहे , कोने पड़ी रोती प्रीत ।।

सौहार्द्र संस्कृति है निष्प्राण, मृतक पड़ा भाईचारा ।

आह्वान हे राम तुम्हारा ,फैला जग में अंधियारा ।।


सत्य नित्य प्रताड़ना पाता, झूठ फैला बरगद सा ।

संस्कृति करती नित्य विषपान ,पाश्चात्य बना अजगर- सा ।।

मूल्य आदर्श सब टूट रहे, सूखी नैतिकता धारा ।

आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।।


संबंधों का नंदनकानन, लील रही है भौतिकता ।

पारिजात सब पुष्प नेह के, कुचल दी आत्म केंद्रिकता ।।

राजनीति की विसात पर अब ,मनुष्यता बनी चारा ।

आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।।


स्वार्थ पगी है दुनिया सारी, त्याग -स्नेह मिट रहा जहां ।

जगत् दानवता बोलबाला, मिट रहा मानवता -निशां ।।

प्रभु!कलुषित हो गया संसार, हर लो हिय का तम सारा ।

आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।।


सारी दुनिया झोंक युद्ध में, स्त्री गरिमा से खेल रहा ।

मार रहे भाई-भाई को, मानव कलंक झेल रहा ।। 

नित्य द्रौपदी का चीर हरण, जल बहे नयन से खारा ।

आह्वान हे राम तुम्हारा, फैला जग में अंधियारा ।।



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