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डॉ. Pankajwasinee

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डॉ. Pankajwasinee

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विजयादशमी

विजयादशमी

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सीता - मुक्ति का था यह युद्ध !

सात्विक राम थे अतिशय क्रुद्ध !!


दुर्गा लिए रावण को अंक !

देख राम -हृदय हुआ सशंक !!


बोले होकर अति खिन्न मना !

क्यों अन्याय को संबल दिया !!


नहीं होगी युद्ध में विजय !

सता रहा है रावण- जय- भय !!


अब न होगा सीता उद्धार !

मेरी प्राणप्रिय प्राणाधार !!


खिंची दृग राममय सीता छवि !

नयनों से पुण्यसलिला बही !!


साहस- मेरु को देख विगलित !

वानर सेना अतिशय विचलित !!


तब जांबवान लाए ढांँढ़स !

रघुकुल शिरोमणि तज न साहस !!


रावण से गुरुतर करो भक्ति !

निश्चय हि स्वपक्ष होंगी शक्ति !!


तब राम को नव आशा बंँधी !

भावना शक्ति -भक्ति में सधी !!


नवरात्रि - दुर्गा - आराधना !

की राम ने अविरल प्रार्थना !!


देकरके अपने नयन कमल !

प्रस्तुत दुर्गा को भक्ति नवल !!


संकल्पित हो धारे कृपाण !

देवी प्रकट हो गईं सप्राण !!


पा भक्ति पगा अद्भुत प्रमाण !

मुदित हो दिया विजय वरदान !!


माँ आशीष पा चले रघुवर !

अतिशय आत्मविश्वास से भर !!


ठना राम - रावण विकट समर !

रावण हुआ पराजित सत्वर !!


जग को सदैव स्मरण राम- जय !

बुद्धि, समृद्धि अधर्म से क्षय !!


हुआ अधर्मी शत्रु का नाश !

छाया चहुँ ओर विजयोल्लास !!


यही दिवस था विजयादशमी !

विजयी हुए श्री राम धर्मी !!


जगत् प्रसारित यश कीर्ति धवल !

रघुकुल गौरव का चरित विमल !!


यही नई सभ्यता का सृजन !

स्त्री में व्यक्तित्व का निदर्शन !!


स्त्री नहीं भोग्या , आत्मा- अंश !

किया समूल नष्ट रावण - वंश !!


नारी गरिमा की रक्षा कर

विजयादशमी पर्व की सीख !!

दुष्कर्मी का झट करो नाश !

कन्या - आत्मा न करें चीख !!




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