विजयादशमी
विजयादशमी
सीता - मुक्ति का था यह युद्ध !
सात्विक राम थे अतिशय क्रुद्ध !!
दुर्गा लिए रावण को अंक !
देख राम -हृदय हुआ सशंक !!
बोले होकर अति खिन्न मना !
क्यों अन्याय को संबल दिया !!
नहीं होगी युद्ध में विजय !
सता रहा है रावण- जय- भय !!
अब न होगा सीता उद्धार !
मेरी प्राणप्रिय प्राणाधार !!
खिंची दृग राममय सीता छवि !
नयनों से पुण्यसलिला बही !!
साहस- मेरु को देख विगलित !
वानर सेना अतिशय विचलित !!
तब जांबवान लाए ढांँढ़स !
रघुकुल शिरोमणि तज न साहस !!
रावण से गुरुतर करो भक्ति !
निश्चय हि स्वपक्ष होंगी शक्ति !!
तब राम को नव आशा बंँधी !
भावना शक्ति -भक्ति में सधी !!
नवरात्रि - दुर्गा - आराधना !
की राम ने अविरल प्रार्थना !!
देकरके अपने नयन कमल !
प्रस्तुत दुर्गा को भक्ति नवल !!
संकल्पित हो धारे कृपाण !
देवी प्रकट हो गईं सप्राण !!
पा भक्ति पगा अद्भुत प्रमाण !
मुदित हो दिया विजय वरदान !!
माँ आशीष पा चले रघुवर !
अतिशय आत्मविश्वास से भर !!
ठना राम - रावण विकट समर !
रावण हुआ पराजित सत्वर !!
जग को सदैव स्मरण राम- जय !
बुद्धि, समृद्धि अधर्म से क्षय !!
हुआ अधर्मी शत्रु का नाश !
छाया चहुँ ओर विजयोल्लास !!
यही दिवस था विजयादशमी !
विजयी हुए श्री राम धर्मी !!
जगत् प्रसारित यश कीर्ति धवल !
रघुकुल गौरव का चरित विमल !!
यही नई सभ्यता का सृजन !
स्त्री में व्यक्तित्व का निदर्शन !!
स्त्री नहीं भोग्या , आत्मा- अंश !
किया समूल नष्ट रावण - वंश !!
नारी गरिमा की रक्षा कर
विजयादशमी पर्व की सीख !!
दुष्कर्मी का झट करो नाश !
कन्या - आत्मा न करें चीख !!
