STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

4  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

आवारा जानवर

आवारा जानवर

1 min
75

आज गाये हो रही आवारा है

इंसां बेशर्म हुआ बहुत सारा है

लाज,शर्म उनको आती नही है,

सब घट हुए पत्थरों के यारा है 


मनुष्य में इन्हें लड़का चाहिये,

पशुओं में इन्हें गाय चाहिये,

इनके जुर्मों को देखकर,

ख़ुदा भी रो रहा बहुत सारा है


जानवर बेचारा दर-दर भटकते,

खाते थैली,क़भी भूखे से मरते,

आज गाये हो रही आवारा है

अब हवा हो रही स्वार्थी यारा है


आज जानवर मर रहे है

हम इंसान उन्हें हंस रहे है

एकदिन ऐसा भी आयेगा

वो हंसेगा इंसान रोयेगा

ख़ुदा करेगा इंसाफ हमारा है


जब दूध न देती है,

हो जाती वो लाचार चारा है

सब मारते उसे पत्थर,

उसे नही मारते है 

जिसने किया उसे बेसहारा है


सुधर जाओ हे मानवों,

मत करो परेशान इनको,

इन जानवरों से ही मिला,

हमको जीने का सहारा है


न दो किसी पशु को दुत्कार,

खुदा देगा भव से तुम्हे तार,

जानवरों का रखो ख्याल,

ख़ुदा करेगा हित तुम्हारा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract