तांडव शिव का
तांडव शिव का


१६ जून,२०१३
कौन भूल सकता है
उस भयानक काली रात को,
बाबा केदार के तांडव
उनके श्राप को,
उनकी खुली तीसरी आंख के कोप को
जो क्रोध में बादलों से टकरा रहा थी,
भयानक गर्जना करते बादल
और रौद्र रुप देख शिव का
धरती आकाश
पहाड़ भी थर थर कांप रहे थे
डरे सहमे भरभरा के टूट रहे थे।
नदियां भी रौद्र रूप से
भय खाती उफान पर थी
बह रही थी अपनी सीमाओं को लांघ कर,
उधर इंसान अपनी करनी पर भयवश चुप था
हाथ बांधे बाबा के आगे नतमस्तक था,
प्रकृति से खिलवाड़ का ये दंड उसने पाया
देख बाबा के रौद्र रूप को
मन ही मन घबराया,
पुकारने लगा बाबा को
मिन्नते मांग पश्चाताप में घुलने लगा,
पर बाबा आज मौन थे
बहुत रूष्ट
हृदय से दुखी थे,
इंसान को उसकी करनी का दण्ड देने को आतुर थे।
इंसान भी बदहवास,
डरा सहमा अपनी नियति से भागे जा रहा था
इस क्रोध से बचने का उपाय खोजे जा रहा था,
पर लाख जतन कर भी हार गया
उस सर्वशक्तिमान शिव के आगे
बेबस मृतप्राय लाचार खुद को पाया।
शिव के तांडव से मौत का ऐसा सैलाब आया
जो भी राह में पड़ा काल में समाया,
सब कुछ तहस नहस कर
मिटा दिया इंसानों का वजूद
बना दिया हर ओर शमशानों का रेला,
हर तरफ बरबादी का मंजर था
चारों ओर बिखरे
इंसानों के मृत शव थे,
जो बचे इस महा प्रलय में
वो कृपा समझ निशब्द सहमे खड़े थे।
प्रलय ने किसी को नहीं बख्शा
क्या बूढ़े क्या जवान क्या बच्चे,
सब इस महा प्रलय का ग्रास बन गए
यम के पाश से काल में खो गए,
मृत्यु का भय अंधेरा बन छा रहा था
बाबा के रौद्र रूप से धरती क्या
अम्बर भी थरथरा रहा था,
इंसानों ने जो पाप किए
उनका उन्हें दंड मिला
प्रकृति से खिलवाड़ का
सबक
बर्बादी का ये मंजर मिला।