STORYMIRROR

संजय असवाल "नूतन"

Horror Action

4  

संजय असवाल "नूतन"

Horror Action

उन्मादी भीड़...!

उन्मादी भीड़...!

1 min
351

जज्बातों, अरमानों को कुचलते

हर गली कूचों को रौंदते

निकली एक उन्मादी भीड़

हो उग्र हिंसक खूंखार वहशी सी ।


तोड़ती फोड़ती झोंक देती

हर मंजर आग के गुब्बार में

नोच डालती रूह को जिस्म से

मसल देती असंख्य खिलते ख्वाब को।


भयावह हर तरफ खौफ का मंजर

मौत भी पग पग यहाँ सिसकती है

शहर दर शहर जलकर खाक हो रहे

सड़कें लाशों से अटी पड़ी है ।


हवा में अजीब सी सरसराहट है

हर गली, चौराहे सन्नाटा पसरा है

मौत का तांडव देखकर यहाँ

ईश्वर भी कहीं दुबका बैठा है।


नथुनों में दुर्गंध फ़ैली है 

लहू हर ओर जो बिखरा है

जिस्म टुकड़ों टुकड़ों में बंटे हुए

चील कौवे गीदड़ों का पहरा है ।


मानवता जख्मी हो कराह रही

उन्मादी भीड़ की विभीषिका है

लुटी जिंदगी तोड़ फोड़ आगजनी से

गम में अपनों का हाल बुरा है । 


रो रो कर माएँ गश खा रही

क्रूरता की पराकाष्ठा है

अंतर मन छलनी छलनी होकर

स्मृतियों में सिहरन कर रहा है ।


अँधेरा छंटता जा रहा है

बेनकाब चेहरे होने लगे हैं

हाथों के पत्थर सड़कों पर बिखरे

हैवानियत का मंजर बता रहे हैं ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Horror