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Vandana Srivastava

Horror

4  

Vandana Srivastava

Horror

बताओ-बताओ ?

बताओ-बताओ ?

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बहुत डरावना था वो मंजर,

यहॉं वहॉं फैले थे अस्थि पिंजर,

रह रह कर आती थी आवाज,

उल्लू चमगादड़ सियार और बाघ,

कड कड कड कड बिजली थी कड़कती,

और कभी थम थम कर थी चमकती,

घने बियाबान जंगल के बीच,


ये कैसी जगह लाई हमें खींच,

क्या यहीं होना था गाड़ी को पंक्चर,

ऐसे माहौल में कैसे रूकेंगे रात भर,

बाहर बरसती बारिश करे शोर,

ऐसे कैसे बोलो होगी अब भोर,

दरवाजे भी धड़ धड़ आवाज कर रहे,


खिड़कियों की भड़ भड़ सन्नाटे तोड़ रहे,

तभी आई छम छम छमकती पायल की आवाज,

धीरे धीरे बजने लगा संगीत और साज,

ज्यों ही सामने प्रकट हुई मंजुलिका,

यूं लगा प्राण निकाल अब लहू इसने पिया,

बोली आने का दुस्साहस कैसे किया,


यहॉं आकर भी क्या कोई बाहर जाकर जिया,

थर थर कॉप रहे थे पॉव जीवन का लगा था दॉंव,

कोई कैसे बोल पाता दम था सीने में घुंटा जाता,

फिर आने लगी छम छम की आवाज चौतरफा,

एक नहीं यहॉं तो चारों ओर से थी तीव्रता,

पहले तो हमने क्षमा मॉंगी याद जो आई थी नानी,

चेहरा था उसका जला हुआ,

पर सज्जा से वह परिपूर्ण हुआ


बोली आज सुनाती हूं कहानी,

बरसों पहले ये राज्य था और यहॉं की मैं रानी,

शत्रुओं नें डाली थी बुरी नजर,

हम भी भीतर कर बैठे जौहर,

वीरता की बन गईं हम मिसाल थे,

आज भी पॉव नहीं धरता कोई हम हो गये बयार थे,

हाथ जोड़कर किया उनकी वीरता को प्रणाम,

उसके बाद आँख खुली जब फिर हुई शाम,

खुद को संभाल बाहर भाग खड़े हुये,

हमें ढूंढते हमारे मित्र गण मिल गये,


जोर जोर से पुकारा हमने उन्होंने अनसुना कर दिया,

छू कर बताना चाहा पर यह क्या छूना भी मुश्किल हुआ,

जोर जोर से आने लगी हंसने की आवाजें,

स्वागत है आपका आप भी हम से सुनें फसानें,

यह क्या सिर चकराया क्या हम भी उनमें से एक हुये,

बताओ सबको क्या लगता है जिंदा हैं या....,.....?


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