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मिली साहा

Horror Tragedy

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मिली साहा

Horror Tragedy

उस एक रात का रहस्य

उस एक रात का रहस्य

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गुत्थी सुलझ ना पाई आज तक उस रहस्यमयी रात की,

ना कोई व़जूद था और ना कोई तस्वीर थी उस बात की।


मम्मी-पापा, बेटा-बेटी चार सदस्यों था का एक परिवार,

सब कुछ ठीक चल रहा था, खुशियों से भरा था संसार।


पर एक घटना ने, एक पल में ही, सब कुछ बदल दिया,

घटना ऐसी रहस्यमयी जिसका निशान तक न रह गया।


जीवनभर की पूंजी जमा कर लिया था एक आशियाना,

बरसों बाद आई थी चेहरे पर खुशी पूरा हुआ था सपना।


लिया था जो घर उन्होंने, शहर से थोड़ी उसकी दूरी थी,

कम बजट के कारण ही तो वो लेना उनकी मजबूरी थी।


फिर भी सबके चेहरों पर खुशी थी, वो घर होगा अपना,

शहर से दूर ही सही पर पूरा तो हुआ, आखिर ये सपना।


आंँखों में उत्साह सबके अगले दिन करना था गृह प्रवेश,

उनके और आशियाने के बीच, एक रात रह गई थी शेष।


सारा सामान सजा पड़ा वहांँ, नए घर में जाने को तैयार,

कहीं छूट न जाए कोई सामान मांँ देख रही थी बार-बार।


कल के सपने आंँखों में लेकर, सो गए सब गहरी नींद में,

पर मांँ की आंँखें स्थिर हो गई दूर से आते प्रकाश बिंब में।


एक अद्भुत रहस्यमयी प्रकाश खींच रहा था अपनी ओर ,

कानों को उसके भेद रहा था एक अजीबोगरीब सा शोर।


ऐसा लग रहा था वो प्रकाश उसे ले जाना चाहता है कहीं,

चलती ही जा रही थी खुद-ब-खुद छूटी जा रही थी जमीं।


चीखी, चिल्लाई, पर किसी ने भी, ना सुनी उसकी पुकार,

मानों उसकी आवाज़ कैद कर, उसे कर दिया हो लाचार।


समझ से बाहर था सब कुछ, देख कर सांँसे पड़ गई मंद,

थोड़ी देर में जब छटा प्रकाश, कमरे में खुद को पाया बंद।


उस कमरे में न खिड़की थी न दरवाजा न कोई रोशनदान,

चारों ओर रक्त बिखरा हुआ था, ये जगह कैसी अनजान ।


तभी अचानक एक साए ने उसे, अपनी आगोश में लिया,

विलीन कर लिया खुद में उसे और जमीं में दफ़न हो गया।


सुबह आंँख खुली जब सबकी मांँ को बिस्तर में नहीं पाया,

ढूंँढा इधर-उधर सब जगह, पर हर प्रयास विफल हो गया।


बस एक ही जगह रह गया बाकी, उनका नया आशियाना,

गृह प्रवेश पूजा का समय बीत रहा, मांँ को था उन्हें ढूंढना।


सोचा सबने वहीं पर शायद कर रही होगी पूजा की तैयारी,

मन में डर तो था पर उम्मीद भी बंँधी थी, वहीं पर से सारी।


वहांँ जाकर देखा तो कोई नहीं था, रह गए सभी अचंभित,

अभी कल की ही तो बात थी, कितने थे हम सब पुलकित।


मांँ कहांँ गई, कब गई आसपास किसी को नहीं थी ख़बर,

कुछ पता चला नहीं, ढूंँढते ढूँढते , सुबह से हो गई दोपहर।


थक हार कर सभी चिंतित बैठे वहीं, नए घर के बरामदे में,

तभी उनकी नज़र स्थिर हो गई, दूर बिखरी एक चमक में।


पास जाकर देखा तो, मांँ की कुछ चूड़ियांँ बिखरी पड़ी थी,

देख चूड़ियों को उस जगह पर, मन में कुछ आस जगी थी।


चूड़ियों को उठा कर, बढ़ते गए आगे मन में उम्मीद लेकर,

ज़रूर होगी मांँ यहीं कहीं, चल रहे थे मन में यही कहकर।


तभी अचानक एक साड़ी का टुकड़ा लिपटा मुंँह पे आकर,

मानो कह रहा हो मुसीबत में हूंँ, तुुम बचा लो मुझे आकर।


मांँ की साड़ी का वो टुकड़ा था, पर उनका नहीं आता पता,

जाने क्या, कौन सा रहस्य था ये, क्या था इसमें राज छुपा।


पुलिस ने भी इस घटना की,की छानबीन हाथ कुछ न लगा,

चूड़ियांँ और वो साड़ी का टुकड़ा अचानक गाायब हो गया।


कोई सबूत नहीं था कोई निशान नहीं जो उनको ढूंँढा जाए,

जब मांँ ही नहीं तो, इस आशियाने में, अब कैसे रहा जाए।


एक रात में ही बदल गई, उनकी पूरी ज़िन्दगी, पूरा संसार,

सुबह न आई उस रात की, जो बनना था खुशियों का सार।


दस साल गुजर चुके, पर परदा न उठ पाया उस रहस्य से,

ना वो लौट कर आई आज तक, ना ख़बर मिली किसी से।



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