इंसान और चिड़िया
इंसान और चिड़िया
अच्छा हुआ कि तुमने नाम दिया,
हम ने सोचा भी नही ऐसा ईनाम दिया।
अब जाते-जाते एक बात तो सुन लो,
वापस मत आना, लोग घर जलाये बैठे हैं।
सुबह और शाम तुम मेरी खिड़की पर होती थी,
पड़ोसी की तरह बसेरा हमारा साथ में तो था।
तुम्हारी नाराज़गी में हमने अपनी गलती मान लिया,
बेज़ुबान तुम भी नही और मैं भी नही पर मैं हो गया।
पर इस दिल को क्या और कैसे समझाऊँ
तुम भी बहुत ज़िद्दी हो और मैं भी हूँ ज़िद्दी।
-कुँवर