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Kunwar Singh

Abstract Romance Inspirational

4.6  

Kunwar Singh

Abstract Romance Inspirational

तुम और मैं

तुम और मैं

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मैं भी सहमा सा हूँ 

तुम भी सहमी सी हो

जो मेरे मन की सिकुड़न है

तुमसे कह भी देता सब 

पर डरता भी रहता हूँ

ना धुँधली होती तेरी वो देहरी की रेखा

फिर से तुम्हें

शांत चुप ना कर दे...


इंतज़ार करता रहा हूँ

तुम उस भरोसे से बताओगी

मन में चलती उस तूफ़ान को

जो सदियों से ढोती आई हो

सदी कई लगी है मुझे भी

ये कटुता जानने में

सवार था मैं भी

उसी नाव में...


पतवार मेरे हाथों में रही

पर उस पतवार को

खेना सीखा था

उसी रीति से

पर तुम्हें पता है

उस वक़्त से अब तक

मेरे मन में छाया हुआ है

घोर-अंधकार...


मैं भी बता नहीं पाया कभी

इस अँधेरे अकेलेपन को

पर वक़्त भी डूबा है

उस अंधेरे तल में

मैं भी कुछ तुम सा हूँ

इस रोशनी की उम्मीद में

उस एक सुबह तुम और मैं

एक साथ हो...



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