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Kunwar Singh

Abstract Romance Inspirational

4.6  

Kunwar Singh

Abstract Romance Inspirational

तुम और मैं

तुम और मैं

1 min
162


मैं भी सहमा सा हूँ 

तुम भी सहमी सी हो

जो मेरे मन की सिकुड़न है

तुमसे कह भी देता सब 

पर डरता भी रहता हूँ

ना धुँधली होती तेरी वो देहरी की रेखा

फिर से तुम्हें

शांत चुप ना कर दे...


इंतज़ार करता रहा हूँ

तुम उस भरोसे से बताओगी

मन में चलती उस तूफ़ान को

जो सदियों से ढोती आई हो

सदी कई लगी है मुझे भी

ये कटुता जानने में

सवार था मैं भी

उसी नाव में...


पतवार मेरे हाथों में रही

पर उस पतवार को

खेना सीखा था

उसी रीति से

पर तुम्हें पता है

उस वक़्त से अब तक

मेरे मन में छाया हुआ है

घोर-अंधकार...


मैं भी बता नहीं पाया कभी

इस अँधेरे अकेलेपन को

पर वक़्त भी डूबा है

उस अंधेरे तल में

मैं भी कुछ तुम सा हूँ

इस रोशनी की उम्मीद में

उस एक सुबह तुम और मैं

एक साथ हो...



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