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Kunwar Singh

Abstract Romance Classics

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Kunwar Singh

Abstract Romance Classics

बंजारा राही हूँ !

बंजारा राही हूँ !

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छोटी लगती है ये जिंदगी 

अभी इतनी बड़ी तो नही।


पर जिंदगी में कई अनुभव 

साथ जो मिले लोगों से।


सफ़र के इन रास्तों में

कुछ फूल तो कुछ काँटों से।


हमराही चले मंजिल की तलाश में

पर मैं ठहर जाता हूँ यूँ ही बंजारा से।


सफ़र ज़िंदगी की कुछ ठहर जाती

राही हूँ मैं भी डगर का चला फिर से।


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