काश!
काश!
तुम्हें लिख पाना मुश्किल है
जितना तुम्हें लिखना चाहूँ।
चला जाता हूँ कुछ साल पीछे
और वहाँ ठहर जाता हूँ।
तुमसे करना चाहूँ बातें
कल की और आज की।
बातें जो तुम्हें याद नही
और वो जो तुम रूठो ना।
लिखा उन खुशियों को
और सिर्फ खुशियाँ लिखा।
पर लिखा हुआ देखा
तो कुछ खोया लिखा मिला।
सोचा! शब्द बदल दूँ
पर शब्द धुँआ हुआ।
कलम टूटी ख़ाक स्याह मिला
अब तुम ही बताओ क्या लिखूँ?
