पहचान
पहचान
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कौन कहाँ से आता है पर होता यहाँ भेद तो है
मिज़ाज शहर का अलग है पर कहाँ गाँव सा है।
लिखा हुआ कुछ है पर वह सादा तो है
इतिहास तो नही है पर मिटा सा है।
शागिर्द तो नही है पर खुद की कोशिश तो है
अर्जुन तो नही है पर एकलव्य सा है।
ज़िंदगी हार-जीत है पर वह खोटा सिक्का भी तो है
ठोकरें लग टूट जाता है पर कुछ जुनून सा है
ना लोहा, ना पत्थर का है पर खुद को तराशाता तो है
मिट्टी से आया, पर मिट्टी नही, पर मिट्टी सा है।
कोरा कुछ कागज है पर क्या कलम में स्याह है
लिखा हुआ होना है पर अधूरी कहानी सा है।