वो! एक ख्वाब
वो! एक ख्वाब
वो ! एक ख्वाब, आया था दिल में,
सोचता रहा कोई,होगा इक सपना,
बिखर गया पल में,रात ढलते जब,
साथ छोड़ चला, बना नहीं अपना।
मुस्कुराती आई ख्वाब में अल्हड़,
हँसती हुई, चीर गई अपना दिल,
बस, अब सोचता रहता हूं कभी,
पुन: ख्वाबों में सही, जाये मिल।
पर सपने ता,े सपने होते हैं भाई,
किसका कब देते आये, ये साथ,
जीवनभर का दर्द दे गई मुझको,
इक बार भी पकड़ न पाया हाथ।
क्या सुंदर होता हकीकत बनता,
फिर तो जीवन जी लूंगा हँसकर,
चाहे फिर लाख चाहे वो छुड़ाना,
बांहों में भर लूंगा, तब कसकर।
कितने ख्वाब सुहाने जन मिलते,
कितने ही फूल फिर राह खिलते,
आना जाना सदा लगा रहा जगत,
पर जो चले गये, फिर न मिलते।।

