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नविता यादव

Horror

1.2  

नविता यादव

Horror

रात का दानव

रात का दानव

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चलते-चलते यूँ ही निकल पड़े कही दूर

अपनी ही दुनिया में खोये हुए थे,

मस्त थे, थोड़े थे मशगूल

चले जा रहे, चले जा रहे थे।


रात का समय था,

अचानक कदम थम गए,

सामने जब नजर उठा कर देखा

काली अंधेरी रात है

सुनसान सड़क है

मैं हूँ और आस-पास घना जंगल है,

फिर क्या था, धड़कने वहीं थम गयी।


जब दूर कहीं एक साया नजर आया,

सर-सर, सर-सर हवा यूँ बहकने लगी

आसमाँ में कड़कड़ाती बिजली चमकने लगी,

झम-झम, झम-झम पानी बरसने लगा

भू तल पे रक्त की धारा बहने लगी।


मैंने देखा कोई मुझे घूर रहा है,

मेरी तरफ बढ़ने की कोशिश कर रहा है

दिल की धड़कन थमने सी लगी

मुखमंडल में पसीने की धारा बहने लगी,

बरसात भी तेज है,और मेरी धडकनें भी तेज है

जंगल की तरफ़ से आने वाली

चर-चर की आवा

जें भी

दिल और दिमाग को पागल बना

मेरी तरफ़ बढ़ने लगी है।


अब क्या था, मैं और भगवान का नाम था

पल-पल,हर-पल चीख-,पुकार सुनायी दे रही हैं,

चारो तरफ सिर्फ शोर ही हो रहा है,

ये सोचूँ, यहाँ भागूँ की वहाँ भागूँ,

जिस दिशा भागूँ, वो साया सामने नजर आये,

कुछ वक़्त ठहरी, एक झाड़ की ओट में छूप गयी

थोड़ी सासें ही ली थी कि..

जमीन से हाथ निकलते हुए मैंने पाए।


अब तो बस अंतिम समय नजदीक था,

जब मेरे गले के चारों तरफ़,

भयानक से दाँतो का डेरा था

उफ्फ़, बस यही आवाज निकली थी

मैं और मेरी बॉडी अब उस

दानव की भेंट चढ़ गयी थीं।


अब मैं भी उस भू रक्त के रंग में रंग गयी थी

काली अंधेरी रात की भेंट चढ़ गई थी।

और आज उसी जंगल में, उस झाड़ के बीच

एक प्रेतात्मा बन के घूम रही है।


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