बारिश
बारिश
मेरा आंसू भी बारिश का कतरा बन गया
जब मेरा घर जल रहा था और कोई उसे बचाने नहीं आया
आग खा गई मेरे मकान की एक एक दीवार को
मगर कोई उसे बुझाने नहीं आया
मैं हैरान परेशान बैठा था इस दुख में
कि कोई मेरी गुहार सुन ले
देख रहे थे सब शांत रह कर मैं उम्मीद करता रहा
कोई तो मेरी मदद की पुकार सुन ले।
फिर कुछ समय में सब ख़ाख हो गया
जो संजोकर रखा था मैंने ज़िंदगी में
वो मेरी आंखों के सामने राख हो गया।
अब कुछ शेष न था
पूरा घर वीरान हो गया
जहां मैं कभी ख़ुशी से रहता था
वो अब श्मशान हो गया।

