काली रात
काली रात


एक समय की बात है,
जगा रात को मैं,
ग़रज रहे थे बादल
बरस रहे थे मेघ।
दिखा मुझे एक घना साया
खिड़की की ओर,
तभी सर-सर सर-सर
हवाएं चलने लगी,
आसमां में कड़कड़ाती
बिजली चमकने लगी।
छत पर जाकर देखा,
झम-झम झम-झम
पानी बरस रहा था,
मानो छत पर
रक्त की धारा बह रही थी।
देखा मैंने मुझे कोई घूर रहा है,
मानो जैसे मेरी ओर बढ़ने की
कोशिश कर रहा है,
दिल की धड़कनें
मानो थमने लगी।
मुख मंडल पर पसीने की
धारा बहने लगी,
काला साया मेरी ओर बढ़ने लगा,
मानो मुझसे कुछ कहने लगा,
मेरे कानों में दर्द
चीख-पुकार सुनाई देने लगी,
मानो काला साया
मेरी ओर बढ़ने लगा।
आसमां में कड़
कड़ाती
बिजली चमक रही थी,
हल्की हल्की सी
रोशनी आ रही थी,
उसकी लाल आंखें
घूर रही थी मुझे,
अंतिम बेला जिंदगी की
दिख रही थी मुझे,
लाल आंखें कुछ
कह रही थी मुझे,
अंतिम बेला जिंदगी की
दिख रही थी मुझे।
रक्त का प्यासा
रक्त मांग रहा था,
हवाओं में मानो
दर्द गूंज रहा था,
बढ़ने लगा वह मेरी ओर,
यहां भागूँ वहां भागूँ
जिस दिशा भागूँ
वह साया सामने आया,
उसके भयानक दांतों का
डेरा था मेरे गले पर,
मृत्यु के मुंह में
खोता हुआ जीवन,
रूह ने मेरे शरीर को
त्याग दिया,
अब मैं भी उस रक्त के
रंग में रंग गया,
काली अंधेरी रात की
भेंट मैं चढ़ गया।