तुम कौन हो
तुम कौन हो


तुम कौन हो बोलो कुछ
क्यों मौन हो,
बताओ ना तुम कौन हो।
हकीकत हो या ख़्वाब हो,
खामोशी हो या आवाज हो,
तुम कौन हो बोलो कुछ
क्यों मौन हो।
अंत हो या आगाज हो,
सायरी हो या अल्फ़ाज़ हो,
मेरी जीत की बोल हो,
या तुम ही मेरी गीत हो,
बिछड़ गया जो सालो पहले,
क्या तुम वही मीत हो
बोलो कुछ क्यों मौन हो।
तुम कौन हो बोलो कुछ,
तुम सवाल हो या जवाब हो,
खुली कोई किताब हो या
कोई गहरा राज़ हो।
क्यों हर साँस से पहले
मुझे तुम्हारी ही याद आती है,
क्यों तुम्हारे नाम से ही
मेरी धड़कन तेज़ हो जाती है,
क्यों मेरी कलम तुम्हरी ही नाम
लिख
लिख के मिटाती है।
अब तो मेरी नींद भी मुझसे
यही सवाल करती है,
कौन है वो जो हर पल
तेरी आँखों में रहती है,
बताओ तुम कौन हो
बोलो कुछ क्यों मौन हो।
तन्हाइयों में भी क्यों इस दिल को
तुम्हारी ही तलाश रहती है,
क्यों मेरी लबों पे सिर्फ
तुम्हारा ही नाम रहता है।
क्या रिश्ता बन गया है तुमसे मेरा,
क्यों मेरे अश्को में भी सिर्फ
तुम्हारा ही अश्क दिखता है,
क्यों तुम बिन मेरा हर सपना
अधूरा सा लगता है।
अब तो इन हवाओं का भी
यही सवाल है,
कौन है वो जो हर पल
तेरे ख़यालों में रहती है,
कौन हो तुम बोलो
कुछ क्यों मौन हो।