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Rashmi Prabha

Horror

3  

Rashmi Prabha

Horror

ये तो मैं ही हूँ !

ये तो मैं ही हूँ !

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आज मैं उस मकान के आगे हूँ

जहाँ जाने की मनाही थी

सबने कहा था -

मत जाना उधर

कमरे के आस पास

कभी तुतलाने की आवाज़ आती है

कभी कोई पुकार

कभी पायल की छम छम

कभी गीत

कभी सिसकियाँ

कभी कराहट

कभी बेचैन आहटें ....


मनाही हो तो मन

उत्सुकता की हदें पार करने लगता है

रातों की नींद अटकलों में गुज़र जाती है

किंचित इधर उधर देखकर

उधर ही देखता है

जहाँ जाने की मनाही होती है !


आज मैंने मन की ऊँगली पकड़ कर

और मन ने मेरी ऊँगली पकड़

उधर गए

जहाँ डर की बंदिशें थीं ...


मकान के आगे मैं - मेरा मन

और अवाक् दृष्टि हमारी !

यह तो वही घर है

जिसे हम अपनी पर्णकुटी मानते थे

जहाँ परियाँ सपनों के बीज बोती थीं

और राजकुमार घोड़े पर चढ़कर आता था


धीरे से खोला मैंने फूलों भरा गेट

एक आवाज़ आई -

'बोल बोल बंसरी भिक्षा मिलेगी

कैसे बोलूं रे जोगी मेरी अम्मा सुनेगी '

!! ये तो मैं हूँ !!

आँखों में हसरतें उमड़ पड़ी खुद को देखने की

दौड़ पड़ी ...

सारे कमरे स्वतः खुल गए

मेरी रूह को मेरा इंतज़ार जो था

इतना सशक्त इंतज़ार !

कभी हँसकर, कभी रोकर

कभी गा कर ....

बचपन से युवा होते हर

कदम और हथेलियों के निशां

कुछ दीवारों पर

कुछ फ़र्श पर ,

कुछ खिड़कियों पर थे जादुई बटन की तरह

एक बटन दबाया तो आवाज़ आई

- एक चिड़िया आई दाना लेके फुर्रर..

दूसरे बटन पर ....

मीत मेरे क्या सुना ,

कि जा रहे हो तुम यहाँ से

और लौटोगे न फिर तुम ..'

यादों के हर कमरे खुश नुमा हो उठे थे

और मन भी !

कभी कभी ....

या कई बार

हम यूँ ही डर जाते हैं

और यादों के निशां

पुकारते पुकारते थक जाते हैं

अनजानी आवाजें हमारी ही होती हैं

खंडहर होते मकान पुनर्जीवन की चाह में

सिसकने लगते हैं

.....भूत तो भूत ही होते हैं

यदि हम उनसे दरकिनार हो जाएँ

मकड़ी के जालें लग जाएँ तो ....

किस्से कहानियाँ बनते देर नहीं लगती

पास जाओ तो समझ आता है

कि - ये तो मैं ही हूँ !!!



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