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Ms. Nikita

Abstract Horror Tragedy

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Ms. Nikita

Abstract Horror Tragedy

धुआँ-धुआँ

धुआँ-धुआँ

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प्रकृति ने वरदान दिया

मानव का निर्माण किया


फूल-पत्ती ईनाम दिया

मानव ने उनसे नशा छान लिया


स्वयं दोहन के मार्ग संवारे

कलंकित किए काज सकारे


नहीं लाज, नहीं कोई लज्जा

नहीं आरोपित मानव दूजा


सस्ता-सा नशा किया

स्वयं को बलिहारी मान लिया


क्षति की अपने तन-मन को

परमानव का भी जीवन लिया


यह मानव को क्या हुआ

कहीं आग है

तो कहीं धुआँ-धुआँ


आज जो उसका सुख है

कल से उसको जड़ से खाएगा


एक मानव नष्ट होकर

लाखों को नष्ट कर जाएग।


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