जलियाँवाला बाग हत्याकांड
जलियाँवाला बाग हत्याकांड
गीत
जलियाँवाला बाग सुनाता
अमर शहीदों ने खूँ से जो,
लिख दी उसी कहानी को।
जलियाँवाला बाग सुनाता,
डायर की मनमानी को ।।
ब्रिटिश हुकूमत ने जब हम पर,
रोलेट एक्ट लगाया था।
स्वतंत्रता के मतवालों को,
नहीं एक्ट वो भाया था ।।
उसका ही विरोध करने को,
सभा एक बुलवाई थी।
जनरल डायर को लेकिन वो,
फूटी आँख ना भाई थी ।।
महंगा पड़ा मगर उसको भी,
करना इस नादानी को।
जलियाँवाला बाग सुनाता ,
डायर की मनमानी को ।।
शांति सभा पर चली गोलियां,
कत्ले आम हजारों का ।
फला नहीं ये काम, विश्व ने,
माना था हत्यारों का ।।
तब चूलें अंग्रेजी शासन,
की डोली तम छाया था।
आज़ादी के सूर्योदय का,
समय निकट यूँ आया था ।।
और अंततः हुए स्वतंत्र हम,
हरा के दुश्मन जानी को ।
जलियाँवाला बाग सुनाता,
डायर की मनमानी को ।।
वाहक"अनंत"समरसता का,
था उधमसिंह निर्भीक मना ।
तीनों धर्म जोड़ने को ही ,
राममोहम्मद सिंह बना ।
उसने ही तब दो गोली से ,
ओ' डायर को मारा था।
भारत माता के जायों की ,
बना आँख का तारा था ।।
भुला न पाएंगे सदियों तक ,
हम उसकी कुर्बानी को ।
जलियाँवाला बाग सुनाता ,
डायर की मनमानी को ।।
