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Neelam Chawla

Tragedy

4.3  

Neelam Chawla

Tragedy

हुंकार

हुंकार

1 min
459


मै युद्ध को पीठ पर ढोती हूँ 

इसलिए एक हुंकार निकलती है

मैं हर लाज़िमी शब्द पर चिखती हूँ 

और नमुनासिब शब्द पर सिसकती हूँ

तलवार नहीं कलम से मस्तिष्क को

तराशती हूं

समझकर भी न समझो

दर्द की धार कितनी पैनी है

प्रसव की पीड़ा में हूँ जैसे


निरंतर सीने में आँख बहती है

उसने दो वक़्त की रोटी के जुगाड़ में

अपनी कमर उधार दे दी

उसने दो वक़्त की रोटी में

अपनी छाती साहूकार के पास रख दी


वो दो रोटी के लिए काले 

हाथों की गोरी हथेलियाँ फैलता है

तुमने देखा होगा उस बच्चे की

कमर पर एक बच्चा सोता है

मेरा सीना छीलता है जब ये कहानी कहती हूँ

वो बूढ़ा बाकी छ: का पेट पाल सके,

अपनी बेटी को हैवानों के हवाले कर आता है

दर्द खेती करता है धड़कनों पर 

पर किसान अपनी खेती से ही मर जाता है


उनकी क्या कहानी जो बंजारे बन गये 

पता नहीं उन माँओ की छाती से कब दूध 

फूटता है



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