पुरुषों का साम्राज्य
पुरुषों का साम्राज्य
लाल सिंदूर लाल बिंदी जो लगा ली
बन सौभाग्यवती जैसे जन्नत ही पा ली।
पल-पल चुकाया कर्ज इस सिंदूर का
अपनी जिंदगी भुला दूसरों की जिन्दगी अपनी बना ली।
ये लाल रंग ही जैसे जीवन का आधार हो गया
इसके लिऐ उसने सारी दुनिया भुला दी।
पर अब ये लाल रंग कभी दिखता उसके गाल पर तो कभी माथे पर
कभी रिसता है फटे होंठ से तो कभी बहता है दिल में जख्म बनकर
ये लाल रंग देने वाले ने मुझे अपनी दासी बना लिया।
जब तलक सजा था माथे पर ये लाल रंग मेरी गुलामी की पहचान बनकर
तब तलक तो सब चुप थे इसे मेरी तकदीर मानकर
उतरा जो आंखों में वही लाल सिंदूर सा रंग रक्त बनकर,
तो लोगों ने उसे अपने साम्राज्य के खात्मे का इशारा समझ
लाल रंग की गरिमा भुला उसे कालिख बना दिया।
था मकसद उसे बदनाम करने का अपने साम्राज्य में
पर ये क्या जो उतारा उसने उसका नकाब तो
अपनी ही घिनौनी सूरत दिखाकर वो
खुद अपने साम्राज्य में बदनाम हो गया।