ठूंठ
ठूंठ
बचपन से जवानी में जब कदम रखा
दिल के किसी कोने में मोहब्बत का सृजन हुआ,
झरने लगे भावनाओं के झरने
लगा हर नया पत्ता एक कोमल कपोल सा।
सोचा ये झरना समंदर में जा मिलेगा
कोमल कपोल पक कर एक सुंदर वृक्ष बनेगा ?
पर हाय री किस्मत तूने ये क्या जुल्म कर डाला,
झर रहा था जहां से झरना उन्हीं पर्वतों ने उसको सुखा डाला।
एक वृक्ष ने अपने ही बीज के सृजन का नाश किया
कोमल कपोल सुखा उसे ठूंठ बना डाला।
गलती उस कोमल हृदया की बस इतनी सी थी
कि उसने अपने जन्म दाता से अपना प्यार मांग डाला।
