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श्रेया जोशी 'कल्याणी'

Tragedy

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श्रेया जोशी 'कल्याणी'

Tragedy

जयंती

जयंती

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विश्वनाथ की लाडली कहती निज नाथ से,

सुनो नाथ जी! लाडली तुम्हारी आज,

एक कहानी तुम्हें सुनाने आई,

जिसने मेरी आंखें भिगाईं,

धीरज धर कर सुनना नाथ!

देखना आ न जाए तुम्हें भी रूलाई।


एक पिता के मन और आंगन में जिसने,

कभी खुशियां थीं सजाईं,

वही घड़ी आज पीड़ा के सागर में उसे डुबाने आई,

देखना आ न जाए तुम्हें भी रूलाई।


एक मां के मन और आंचल में जिसने,

कभी उमंग और ममता की भेंट थी सजाई,

वही घड़ी आज उसे रुलाने आई


देखना आ न जाए तुम्हें भी रूलाई।


मात-पिता, भार्या और भगिनी तो छोड़ो,

उन कोमल फ़ूलों पर भी तुम्हें दया न आई?

काहे को तुमने इतनी निष्ठुरता दिखाई?

देखना आ न जाए तुम्हें भी रूलाई।


आज फिर वही घड़ी है आई,

जो कभी हुआ करती थी जगमग जगमग रोशनी से नहाई,

कभी घर के कोने कोने में हुआ करती थीं खुशियां छाई,

वही घड़ी आज ग़म का सागर लाई,

देखना आ न जाए तुम्हें भी रूलाई।


क्या सूझी तुम्हें जो तुमने हरी भरी बगिया में आग लगाई?

जानती हूं मैं नहीं दोगे जवाब तुम,

पर असह्य हुई जो वेदना,

लाडली तुम्हारी आज तुम्हें वही सुनाने आई,

देखना आ न जाए तुम्हें भी रूलाई।


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