बोझिल मन
बोझिल मन
लो फिर एक बार सात अक्टूबर आई,
सारी घटना किसी चलचित्र सी,
मात-पिता की आँखों में आई,
आज ही के दिन जब तुमने पहली बार दुनिया देखी विरल भाई।
आज के दिन तुम्हारी अनुपस्थिति ने,
सब की आँखें भिगाई,
मेरी तो हो गई मेरे नाथ से जमकर लड़ाई,
काहे को असमय तुम्हें आवाज लगाई।
होते जो तुम साथ तो सब देते खूब बधाई,
मैं भी एक प्यारा सा बधाई गीत लिख भेजती मेरे भाई,
कहे 'कल्याणी' बोझिल मन और कांपते हाथ से यह कविता ना लिखनी पड़ती मेरे भाई ।