सच्चा विज्ञान
सच्चा विज्ञान
सोचता रहा ये मानव,पाषण से सजीव हो गया है।
विज्ञान की हर खोज से,उसे अमरत्व मिल गया है।।
भूल कर सब प्रेम ,करुणा,चला वो विजय पाने को।
रच कितने संग्राम,चला वो खुद से दूर चले जाने को।।
हर एक कदम ही हमे,प्रकृति से दूर ले जाता रहा।
मान विजय इसको,मनुज बनावटी मुस्कुराता रहा।।
आज बना कर धरा को दूषित,स्वांस न वो ले पाए।
हाय हाय मनुज ये तूने,कैसे बबूल के वृक्ष उपजाए।।
कैसी रची ये विज्ञान की गाथा,विकास भी कैसा साधा।
दूषित सोच,प्रदूषित वायु से,रोग रोग से ही बना है नाता।।
न तन स्वस्
थ,न मन स्वास्थ्य,विचार भी आज गुलाम हुए।
विकास की इस आंधी में,परतंत्र मनुज एक एक हुए।।
अंतस नगरी कितनी पावन,असंख्य ऊर्जा का वो स्रोत्र।
भूल कर अपनी ऊर्जा,भोग ने दिया केवल रोग ही रोग।।
रूक जरा रे मानव पगले,उस विजय को अब तो सीख।
अध्यात्म की इस धरती के,एक एक गुण संग अब भीग।।
कर स्नान इस विज्ञान में,शक्ति स्रोत्र तू तो बन जायेगा।
प्रतिभावान ये तुझे बना,अनगिनत विजय पथ सजायेगा।।
कदम बढेगा फिर प्रकृति संग,विजय शाश्वत यह ही होगी।
मनुजता विराजेगी अंतस में,प्रेममय ये वसुंधरा तब होगी।।