झूठे प्रेम....
झूठे प्रेम....
मतलबी फरेबी दुनियां में
कदम अपने
संभल के रखना,
यहां लोगों के बीच
फिरते हैं
भेड़िए नकाब में,
जिन्हें बस देह पसंद है
देह की खुशबू
खींच लाती हैं उन्हें
कमसिन
नासमझ
लड़कियों के करीब,
वो खेलते हैं
बस जज्बातों से
मीठी मीठी बातों से
बनकर अपना,
फैलाते हैं भ्रम जाल
बहकाते हैं
अपने तिलिस्म से
प्रेमपाश में
दिखा उन्हें ढेरों
दिवस्वप्न
हसीं मुलाकातों के,
अपनी छद्म
मोहब्बतों में फसा
कैद कर लेते हैं
उस विश्वास को,
जिसने अपनी हठ में
तोड़ दिए
उन बगियों की
आत्मा को
जहां सच्चा प्रेम
पलक फावड़े
बिछा कदमों में
उनके पड़ा होता था,
फूल बनकर
माथे में उनके
रोज दमकता था,
जहां आसमान खुद
सजदा करता,
सूरज रौशनी से
उनके दामन को
भर देता,
तारे जहां
उनकी राहों में
बिछ जाते,
चांद भी अपनी चांदनी
खुशी खुशी
खुद न्यौछावर कर देता,
जहां ममता का आंचल
हर बला से
उन्हें बचाता,
उनके दर्द में
अपने आंसू बहा
खुद दिल पर
जख्म खाता,
पर तुम्हारी नादानियों ने
तुम्हारी जिद्द ने
सब कुछ
छोड़ छाड़ कर
इज्जत अपनों की
सरेराह में उतार कर,
पिता के सम्मान को
ठोकर मारकर
मां की पुकार को
अनसुना कर,
बहुरूपी दुनियां में
झूठे प्रेम के खातिर
दहलीज लांघ के
कदम रखने चली हो,
उस परवरिश को भूल
मां बाप के
आंसुओं को
रौंद
अपने पैरों तले
चली हो,
जहां हस्र तुम्हारा
क्या होगा
ना तुम जानती हो
ना ये झूठा प्रेम,
पर वक्त सिखा देगा
तुम्हें सच्चे झूठे प्रेम के बीच
उथली लकीरों को,
साजिशें
रंग बदलते लोगों को
अधरों के चुम्बन
अजनबी
बाहों के हार को,
छणिक सुखों के खातिर
छोड़ आई
अपने प्राण प्रियों को,
पर कहीं देर न हो जाए
हवा भी अपना रुख
मोड़ ना ले
संभल जाओ
लौट आओ,
नही तो बस रह जायेगी
एक खामोशी,
और झूठे प्रेम की
दगाबाजी....!!
