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प्रीति शर्मा "पूर्णिमा

Tragedy

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प्रीति शर्मा "पूर्णिमा

Tragedy

"विवाह "

"विवाह "

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कन्या विवाह हो गया,मात-पिता खुश होय।

मन में लिये उमंग वो,सपनों में रत होय।। 

चौखट लांघी मायके,चली डगर ससुराल।

पत्थर दिल सजना मिले,दिल में होय मलाल।।

रिश्तों का मेला सजा,कैसे रखूं संभाल।

घर जंगल सा लागता,संकट है विकराल।।

भटक गयी है चाल भी,समझ ना आय हाल।

मन बतियां कासे कहूं,फंस गयी किस जाल।।

सबको मन का चाहिए,सुध ना मेरी कोय।

बहु पत्नी भाभी बनी,खुद को निसदिन खोय।।

क्या मैं थी क्या हो गयी,सपने सारे तोड़।

डटी रही कर्तव्य पथ,अधिकारों को छोड़।।



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