"स्वतंत्रता"
"स्वतंत्रता"
स्वतंत्रता के नाम पर
नफरत की आग लगा देते हैं।
गर नहीं मानता कोई उनकी बात तो
छत से गिरा देते हैं।।
मजहब की लेकर के आड़़
इन्सानियत का कर देते हैं खून
दूसरे के मजहब को
काफिर करार देते हैं।।
स्वतंत्रता के नाम आज के युवा
उच्छखंलता में गहरे पैठ रहे हैं।
पहन लेती हैं
आधे-अधूरे वस्त्र वो।
आधुनिक होने की आड़ में
अश्लीलता परोस देतीं हैं वो।।
माँबाप को कहने लगते हैं दोस्त
और जब आता है
दोस्ती निभाने का वक्त
तो दोस्ती तोड़ देते हैं।।
स्वतंत्रता कहते हैं इसे
पाश्चात्य की हवा में बहकने लगे।
ये उच्छखंलता का रोग है
जिसे सहज गले लगाने लगे।।
संस्कृति संस्कार छोड़ दिये
पुरातन बेमतलब कहकर।
अश्लीलता कामुकता से भरे
मलिन हृदय आत्मा को खो बैठे हैं।।