"ख्वाब"
"ख्वाब"
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जग गये "ख्वाब" जो सुप्तावस्था में थे
दिल की गहराइयों में,
उनके आ जाने से,
मन पर छा जाने से।।
खिल गया मन का उपवन,
ख्वाबों में रंग भर जाने से
खुशियों के आ जाने से,
मन पर छा जाने से।।
ख्वाब जो देखे थे जीवन के
मधुरिम, मृदु-मधुर पल में।
छोड़ गये जब वो हमको
मुश्किलों के बीच भंवर में।।
आज प्रतीक्षा पूर्ण हुई
दिल में बसी एक कसक सी थी।
आज हुआ वो मेरा, जो था मेरा
मिट गई दूरियां, सच-सपने में थीं।।
छा गई हवा अब मन में प्रेम-प्यार के
सतरंगी रागों की, साजों की।
मन-वीणा के तार बजे, हृदय मिले
धड़कनें बढ़ीं सुप्त पड़े ख्वाबों की।।