"किताब"
"किताब"
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ये जिंदगी की किताब है, हर रोज छपती जाती है।
कोरी थी एक दिन बहुत,अब काली होती जाती है।।
अच्छाई बुरार्ई का मेल इसमें।
हैं बहुत से झोल घालमेल इसमें।।
ताना बाना रिश्तों का बुनकर उलझाती जाती है।।
ये जिंदगी की किताब है, हर रोज छपती जाती है... ।
कर्म के अध्याय कहलाते पडा़व।
हर पड़ाव मिलते अनदेखे घुमाव।
बचपन और जवानी जी,वृद्धावस्था तड़पाती है।।
ये जिंदगी की किताब है, हर रोज छपती जाती है... ।
फँसा रहा राग-द्वेष भरमायेगा।
जो किया प्रेम सद्गति पा जायेगा।
अन्तिम पन्ने पाप-पुण्य की गठरी तोली जाती है।।
ये जिंदगी की किताब है, हर रोज छपती जाती है... ।