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मिली साहा

Romance Tragedy

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मिली साहा

Romance Tragedy

रात की चादर

रात की चादर

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रात की चादर ओढ़कर अक्सर ग़म अपने छुपा लेता हूंँ,

मोहब्बत में मिले ज़ख्म को, आंँसुओं से सहला लेता हूंँ,


झूठा ही सही कभी तो मेरी ज़िन्दगी में शामिल थी तुम,

इसीलिए तेरी बेवफ़ाई को कभी सरेआम नहीं करता हूंँ,


तेरे साथ दुनिया बसाने को, उजाड़ी मैंने अपनी दुनिया,

उन्हीं झूठे एहसास के साथ जीकर मैं पल पल मरता हूंँ,


क्यों बनाई तुमने झूठ के महल में, ख़्वाबों की वो दुनिया,

हाल ए दिल ये, है ख़्वाबों की बस्ती जाने से भी डरता हूंँ,


कोशिश करता हूंँ हर घड़ी दिल का ज़ख़्म बाहर न आए,

पढ़ न ले कोई आंँखें इसलिए तो आंँखें चुराता फिरता हूंँ,


पर ये रात का सन्नाटा कर ही देता है ज़ख्मों को उजागर,

चाह कर भी बेवफाई के अकेलेपन से लड़ नहीं पाता हूंँ,


कहना न किसी से दर्द, करता हूंँ गुजारिश अक्सर रात से,

अपने दर्द में शामिल करके मैं चांँद को भी बहला लेता हूंँ,


मैं अपना दर्द ज़ाहिर कर किसी और को दर्द दे नहीं सकता,

इसलिए झूठी मुस्कान के साथ रात की चादर हटा देता हूंँ।


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