जो लिखा सो ना किया
जो लिखा सो ना किया
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हम लिखते हैं
वो सब बातें अपनी किताबों में,
जिन्हें मानने को इनकार कर देता है दिमाग हमारा।
हम कहते तो ये हैं कि विसंगतियों से रहो दूर,
न करो राजनीति,
करो प्रेम...
उपदेश और उपदेश।
लेकिन हम चाहते हैं
अपना समूह
अपना नाम
अपना सम्मान
अपना धन
कुल मिलाकर अपना स्वार्थ।
और धकेलने में किसी को जो मिलती है खुशी...
वाह!
हमारी,
किताब और ज़िन्दगी
अलग-अलग ही हैं।
और हम कहते हैं कि हम लिखते हैं
किताबों में ज़िन्दगी।
गजब झूठ...