"खाद संकट"
"खाद संकट"
हाय हम किसानों की कैसी मजबूरी है?
हमारी आंखों में आंसू भरे हुए सिंदूरी है
हर साल कतार में खड़ा होना पड़ता है
खाद के लिए हमको ही रोना पड़ता है
हर खुशी की क्यों हमसे हुई दूरी है?
जबकि हमने यहां मेहनत की पूरी है
कृषक प्रधान देश में, मेरी दशा बुरी है
सबने दिन में मदिरा पी हुई अंगूरी है
एक के दो पैसे देना, मेरी तो मजबूरी है
फिर भी न मिलती, ख़ाद की मंजूरी है
फिर क्यों करूँ, सरकार की जी हुजूरी है
जिसने बनाई व्यवस्था, लंगड़ी-लूली है
यहां सब
नेताओं की आत्मा धूर्त पूरी है
चंद पैसों के लिये बेचे, ईमान कोहिनूरी है
किसानों को नित चढ़ना पड़ता सूली है
सरकार क्यों इसकी सुध लेना भूली है
चुनाव आते किसान-किसान चिल्लाएंगे
ये नेता लोग लुभावने वादे लेकर आएंगे
आओ, किसानों एक हो जाओ, बनो सूरी है
वक्त आने पर बेईमानी प्रतिकार जरूरी है
आओ न भ्रष्टाचार पर चलाओ, ऐसी छुरी है
फिर न करे कोई खाद कालाबाजारी बुरी है
तुम्हारे कंधों पर टिकी अर्थव्यवस्था पूरी है
देशी खाद की शक्ति भी कम न कोहिनूरी है।