औरतें चुप हैं
औरतें चुप हैं
औरतें चुप हैं
चुपके चुपके बो रही हैं बीज ख़ामोशी के,
चुप रहकर घर के अंदर यातनाएँ सह
सह कर थक चुकी औरतें !
बेवजह पति के अपशब्द सहती
बिना किसी कसूर के
गुनाहगार ठहराया जाता है जिन्हें..
सच बोलने का साहस करने पर
लतियाई जाती
दो मीठे बोल सुनने की चाह में
पति की गालियाँ खाती!
ससुराल वालों के ताने सहती,
इनका कसूर सिर्फ इतना है
कि इन्होंने अपने और बच्चों के हक़ के लिए
सवाल उठाए, अपना सम्मान चाहा !!!
शाहीन बाग
शाहीन बाग में धरने पर बैठी औरतें
सब कुछ सुनकर भी चुप हैं!
जो चुपके चुपके क्रांति का बीज वो रही हैं!
पनी आने वाली नस्लों को पढ़ा रही हैं,
अहिंसा का पाठ !
सिखा रही हैं चुप रहकर अपने हक़ के लिए
लड़ने की क्षमता विकसित करने का तरीका!
औरत कुछ ठान ले तो दुनिया में
उसे रोकने की ताकत किसी में नहीं!
पुरुषों की बेरुखी से ऊब चुकी औरतें
अच्छी तरह से समझती हैं
कि देह के भूगोल से परे कोई अस्तित्व नहीं
उनका पुरूषों की दुनिया में!
सीख लिया है उसने भी तन से मन को
अलग रखना.. बिछ जाती है हर रात
उसकी काया बिस्तर पर!
उसे पता है पुरुष को उसकी
फीलिंग्स की कोई कदर नहीं है
उसकी छाती को नोच खसोट
उसकी नाभि की ढलान पर फिसल कर
ठहराव पाती है उसकी इंद्रियां!
अपनी मर्दानगी पर अभिमान है उसे!
