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Ashiqeen Ansari

Abstract Tragedy

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Ashiqeen Ansari

Abstract Tragedy

आम आदमी

आम आदमी

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आम आदमी हूँ, गुमनाम आदमी हूँ

नकल नहीं करता, मैं सफ़ेद सादगी हूँ


सियासत नहीं समझता, फोटो खींच लेता हूँ खुश होकर

कल ख़ुद को अखबार में देखूँगा बस यही सोचकर


मेरा रुतबा तब तक है जब तक उस पर किसी की नज़र न पड़े

रोज़ सो जाता हूँ आने वाले कल की फ़िक्र में बीवी से बिना ही लड़े


मैंने सुना है ख़ुदा तेरी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता

मेरे ग़मों का पता ऐ मालिक तुझे क्यों नहीं मिलता


मैं बता ही नहीं सकता कि सुबह ख़ूबसूरत है या शाम

कि मेरे अली का नाम सच्चा है या सच्चा है मेरा राम


दंगों से डर लगता है ख़ून से मैं काँपता हूँ

रास्ता बदल लेता हूँ अक्सर जब भी मैं खतरा भांपता हूँ


ख़ुशियाँ ख़रीद लेता हूँ पर ज़िन्दगी का उधार बाकी है

गली के कुत्ते तो चुप हैं पर सियासत के सियार बाकी हैं


गाँव से आया था मैं पर मैं शहर का शोर नहीं हूँ

ग़रीब बेशक हूँ साहब लेकिन मैं चोर नहीं हूँ


बारिश में टपकती छत बताती है मैं कागज़ी हूँ

आम आदमी हूँ, गुमनाम आदमी हूँ ।।



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