मज़दूर
मज़दूर
फ़टे कपड़े पहनता हूँ मैं नशा नहीं करता
तुम्हें तकलीफ़ में देख मैं हँसा नहीं करता
मेरे बच्चे भी भूखे हैं मेरी तक़दीर रूठी है
पसीना पेशानी पे है मेरी चप्पल भी टूटी है
मौत आती होगी देखो ये मज़ाक नहीं है
खाना दे दो राम वालो ये अख़लाक़ नहीं हैं
खाली है मेरी जेबें हाँ निगाहों में मेरी आँसू हैं
कितना रखूँ दर्द को मैं मेरी कमज़ोर बाज़ू हैं
शक़्ल से बद हूँ मैं लेकिन मुझे भी रब ने पाला है
जितना काला तुम्हारा दिल मेरा न उतना काला है
हुकूमत क्या है ये देखो अमीर अमीर जानती है
मौत से हो गया है इश्क़ ये सबको बराबर मानती है
तुम जाओ अपने घर को ठंडा कमरा याद करता होगा
मुझे घर मेरे जाने को सफर में ही मरना होगा
मुझे कल भूल जाओगे लाशें कीड़े खा जाएंगे
अपने काम करो अब ख़ुद हम न परदेस आएंगे!