नारी
नारी
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भूख उसको भले पहले'खाती नहीं
दुःख हों लाख ही पर जताती नहीं
नित्य जल्दी जगे काम सारा करे
बाद भी वो यहाँ प्यार पाती नहीं
घुट रही ओट में और रस्मों में' वो
लोग कहते उसे लाज आती नहीं
दीप तुम भी नहीं हो उजाले लिये
और कहते उसे तम मिटाती नहीं
और चाहे न कुछ चाह है प्यार की
कर न पाये कहें वो निभाती नहीं
दायजे की चिता में जलाते रहे
नारि “उत्कर्ष” वो दीप बाती नहीं।