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नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष

Others

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नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष

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मुहब्बत

मुहब्बत

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चाँद मुखड़ा, चपल, इशारे हैं।

देखने  में हसीन, प्यारे हैं।


राह देखी, नज़र न आया वो

इश्क़ के वो अजब नजारे हैं।


देखते ख़्वाब एक उसके ही

आज भी हम उसी सहारे हैं।


डूब जाये न प्यार की किश्ती

खौफ़ वाले किसी किनारे हैं।


बेमुरव्वत कहाँ  ज़माना ये

इसलिये तो सभी बे'चारे हैं।


कौन किसका बिगाड़ पाया कुछ

खेल विधि के रचे सँवारे हैं।


मुश्किलों में कहीं रही होगी

वक़्त के तो निशां करारे हैं।


हाल अपना लिखें भला कैसे

बेवफ़ा संग दिन गुजारे हैं।


प्रेम जैसा नहीं, निभाओ तो

ग़ैर कोई न सब हमारे हैं।


मात खाये नहीं कहीं पे भी

प्रेम में वो “नवीन” हारे हैं।


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