अंतर्मुखी अकेले रह जाते हैं
अंतर्मुखी अकेले रह जाते हैं
ना जाने मन में कितने ही दर्द उभरते हैं,
हम इन्हें सिरे से कभी कहाँ समझ पाते हैं !
करुण अधर ज़ब कभी अबोले रह जाते हैं,
तब अंतऱमुखी अक्सर अकेले रह जाते हैं!
पीर ही पीर भरा हो जब किसी के मन में,
कभी कोई अपने मुख से कुछ कह ना पाए !
अन्तर्मन की पीर बर्दाश्त से बाहर हो जाए,
पर, अपनों के संग ह्रदय के घाव भर आए !
कैसा अनोखा होता है दिलों का मधुर रिश्ता,
जो हृदय के कोर-कोर में सदा सर्वदा बस जाए !
