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Usha Gupta

Tragedy

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Usha Gupta

Tragedy

विरह वेदना

विरह वेदना

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रही न सुध तन मन की,

करते करते प्रतीक्षा प्रियतम की,

न रहा होश शृंगार का, 

न थी क्षुधा भोजन की,

देख हँसिनी बगिया में जागी मन में आस नई,


‘हे प्रिय पक्षी,

बन जा मित्र अन्तरंग मेरी,

सुन दर्द हृदय का मेरे,

सुना दें प्रियतम को मेरे,

चले गये जो दूर कर पार नदिया,

सखी मेरी, ले जा माला यह,


पहचान स्वरूप मेरी,

कहना प्रियतम से मेरे,

तप रहा विरह वेदना से तन-मन मेरा,

शीतल किरणें चन्द्रमा की भी, 

जला रही तन को बन अंगारे,

हूँ विहल प्रतीक्षा में तुम्हारी,


गई नींद भी उड़ साथ तुम्हारे,

देती नहीं ठंडक वर्षा की बूँदे भी,

न जाने है कैसी तड़प यह प्रियतम,

एकाकी जीवन बनता जा रहा बोझ,

 अब तो ले लो पिया सुध मेरी।'


सुन दर्द विरहनी का,

भर गये जल नेत्रों में हँसिनी के,

ले माला विरहनी से,

चल दी हँसिनी नदिया पार।।


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