नारी-एक अभिव्यक्ति
नारी-एक अभिव्यक्ति
एक दिवस नहीं 365 दिन
क्यूँ एक दिवस नारी का,
क्यूँ 365 दिन नहीं नारी के।
हर दिन हर पल जब काम करे,
फिर क्यूँ न सारे दिन उसके।
क्यूँ त्याग है नारी के हिस्से,
क्यू पुरुष नहीं है करता त्याग,
फिर भी पाता सारे अधिकार।
त्याग किया तो सीता बनी,
प्रेम किया तो मीरा बनी।
नर की शक्ति है नारी,
दुर्गा,अप्सरा और काली।
फिर भी उसको सम्मान नहीं,
नैनो में आँसू पिये रही।
माँ बनकर बच्चों को पाले,
बहु बनकर सब घर सम्भाले।
जो फर्ज सभी निभाती हैं,
फिर भी अबला कहलाती है।
हर क्षेत्र में साहस दिखलाया,
फिर क्यूँ नारी ने जीवन गवाया।
मुझको नहीं सारी दौलत चाहिए,
बस थोड़ा सा मेरा अधिकार चाहिए।