अनजाना लगाव
अनजाना लगाव
बहुत कुछ एक सा था
तुझ में मुझ में
फिर भी तू मुझसे
बहुत अलग सा ही रहा..
मैं चाह कर भी तेरे
जैसी न बन सकी
तूने कभी खुद को
मेरे जैसा बदलने की
कोशिश न की..
मैं अपना बहुत कुछ
खो कर
पूर्णतः समर्पित रही
तेरे लिए...
तू जान कर भी
पूरी तरह से
सदा सदैव ही अनजान
बना रहा मेरी चाहत से..
कहाँ-कहाँ नहीं समझा मैंने तुझे
तूने अनसमझ बनने में ही
समझदारी जानी..
कुछ इस तरह से ही
न कभी वो मेरा हो पाया
और न ही मैं उसकी बन पाई!