जर्रे-जर्रे
जर्रे-जर्रे
मेरे ख़ुदा, जर्रे-जर्रे में है शामिल तेरा जमाल
मिज़्गान खुद-ब-ख़ुद झुक जातीं हैं तेरी इबादत में..!
तेरे नूरकी तब्सिरा किस तरह करे कोई
मेरी रग-रग में पैबस्त हो गया है
इफ़्फ़त-ए-क़ल्ब हो जाता है तेरी इबादत में..!
हर सिपारे में इस्तिखारे
जेर-ए-तलब महबूब के लिए
समीम-ए-क़ल्ब बन बैठा है तेरी इबादत में..!
