सुनो तो जरा
सुनो तो जरा
न जाने क्यूँ जब भी तुम्हें ये बोलती हूँ कि
बहुत प्यार करती हूं तुमसे,
कहीं न कहीं ये एहसास सा
होने लग जाता है दिल को कि
कहीं कोई कड़ी कमजोर
तो नहीं हो रही हमारी मुहब्बत की..
न जाने क्यूँ
जब मेरा एक मैसेज भेजने के बाद
घण्टों तक सीन नहीं होता है
तो कहीं न कहीं ये एहसास सा
होने लग जाता है दिल को कि
अब पहले जैसे कशिश रही नहीं है रिश्ते में..
न जाने क्यूँ
पहले जब मैं परेशान होती थी
बिन बताए भी पता लग जाता था तुम्हें
अब तो मेरे बताने के बाद भी
भूले बिसरे ही पूछते हो
अब कैसी है तबीयत
तो कहीं न कहीं ये एहसास सा
होने लगता है दिल को कि
अब पहले जैसी परवाह नहीं रही तुमको..
न जाने क्यूँ
पहले कोई बात खुशी की हो या गम की
सबसे पहले जानने की हकदार मैं ही हुआ करती थी
अब तो कई कई दिन बाद पता चलता है
की तुम्हारी जिंदगी में कुछ भला हुआ या बुरा
तो कहीं न कहीं ये एहसास सा
होने लगता है दिल को कि
अब पहले जैसी चाहत नहीं रही तुमको..