प्रश्न
प्रश्न
तुम मेरे लिए सदा प्रश्न से उलझे रहे,
और मैं समाधान सी सुलझी..
कभी सोच ही नहीं पाई
अपनी जिंदगी में तुम से
बढ़कर कुछ..
जहां तक नज़र गईं
नज़र आये सिर्फ तुम ही तुम,
तुम्हारी चाहत,
तुम्हारी वफ़ा में
इस कदर डूबी,
कि संसार में जो देखा
तुम्हारी नज़र से..
वही सुना जो तुमने कहा,
समझ ही न सकी कि
कोई और दुनियां भी हो
सकती है तुमसे परे..
इतना सब कुछ होना ही
पर्याप्त था मेरे लिए,
लेकिन तुम न जाने
किस जहाँ के ख्याब
बुन रहे थे मन ही मन..
समझ ही न सकी कि
मुझसे इतर भी कोई
चाह सकता है तुम्हें,
मेरे से अलग भी कोई दुनियां
हो सकती है तुम्हारी।