नागवार
नागवार
नागवार गुजरता था उसे
मेरा बढ़चढ़ कर कुछ भी करना
कभी मेरे शब्दों में परेशानी होती थी उसे
तो कभी मेरी एक्टिविटीज से..
जैसे ही कुछ भी प्लान करती थी
तो बोलना शुरू करता
ये ठीक नहीं होगा
तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो..
जब भी कुछ अच्छा
कहने की कोशिश करती
तो बोलता दिमाग नहीं है तुममें
हमेशा बददिमाग ही रहोगी..
जब भी कुछ बेहतर
देखने ही कोशिश करती थी
तो बोलता था
कुछ ठीक से समझ नहीं
आता क्या तुम्हें
जैसी दृष्टि के साथ पैदा हुई थी
वैसे ही मर जाओगी..
बरसों बीत गए लेकिन
मुझे आज तक समझ नहीं आया
कि आखिर वो मुझमें
चाहता क्या है..
या फिर
उसकी चाहत क्या है..
